पिछले 15 वर्षों में मीडिया के स्वरूप में बहुत तेज बदलाव देखने को मिला है। सूचना क्रांति एवं तकनीकी विस्तार के चलते मीडिया की पहुंच व्यापक हुई है। इसके समानांतर भूमंडलीकरण, उदारीकरण एवं बाजारीकरण की प्रक्रिया भी तेज हुई है, जिससे मीडिया अछूता नहीं है। नए-नए चैनल खुल रहे हैं, नए-नए अखबार एवं पत्रिकाएं निकाली जा रही है और उनके स्थानीय एवं भाषायी संस्करणों में भी विस्तार हो रहा है। मीडिया के इस विस्तार के साथ चिंतनीय पहलू यह जुड़ा गया है कि यह सामाजिक सरोकारों से दूर होता जा रहा है। मीडिया के इस बदले रूख से उन पत्रकारों की चिंता बढ़ती जा रही है, जो यह मानते हैं कि मीडिया के मूल में सामाजिक सरोकार होना चाहिए।
भारत में मीडिया की भूमिका विकास एवं सामाजिक मुद्दों से अलग हटकर हो ही नहीं सकती पर यहां मीडिया इसके विपरीत भूमिका में आ चुका है। मीडिया की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे मुद्दे रह ही नहीं गए हैं। उत्पादक, उत्पाद और उपभोक्ता के इस दौर में खबरों को भी उत्पाद बना दिया गया है, यानी जो बिक सकेगा, वही खबर है। दुर्भाग्य की बात यह है कि बिकाऊ खबरें भी इतनी सड़ी हुई है कि उसका वास्तविक खरीददार कोई है भी या नहीं, पता करने की कोशिश नहीं की जा रही है। बिना किसी विकल्प के उन तथाकथित बिकाऊ खबरों को खरीदने (देखने, सुनने, पढ़ने) के लिए लक्ष्य समूह को मजबूर किया जा रहा ह। खबरों के उत्पादकों के पास इस बात का भी तर्क है कि यदि उनकी ''बिकाऊ'' खबरों में दम नहीं होता, तो चैनलों की टी.आर.पी. एवं अखबारों का रीडरशिप कैसे बढ़ता?
इस बात में कोई दम नहीं है कि मीडिया का यह बदला हुआ स्वरूप ही लोगों को स्वीकार है, क्योंकि विकल्पों को खत्म करके पाठकों, दर्शकों एवं श्रोताओं को ऐसी खबरों को पढ़ने, देखने एवं सुनने के लिए बाध्य किया जा रहा है। उन्हें सामाजिक मुद्दों से दूर किया जा रहा है।
ऐसी ही परिस्थितियों के बीच मीडिया में विकास के मुद्दों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही भोपाल की एक संस्था विकास संवाद ने कुछ दिन पूर्व चित्रकूट में राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन कर नई उम्मीदें जगाई हैं। संभवत: देश में यह पहला आयोजन है, जिसमें 7 राज्यों – मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब के पत्रकारों ने भाग लिया। संवाद में संपादक, वरिष्ठ पत्रकार, स्वतंत्र पत्रकार, वरिष्ठ उप संपादक, उप संपादक, संवाददाता, जिला संवाददाता, पत्रकारिता के प्राध्यापक एवं पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने शिरकत की।
संवाद का स्वरूप अनौपचारिक था, जिसमें प्रतिभागियों को अपने अनुभवों एवं अतीत को खंगालने का मौका मिला। संवाद की शुरुआत पत्रकारों ने अपने सफर के साथ ही शुरू कर दी थी। आयोजन में विभिन्न संस्थानों के पत्रकार काम के दबाव के बाहर आकर एक दूसरे से मिले। कई पत्रकार पिछले 4-5 वर्षों से फोन पर चर्चा करते रहे थे, पर आपस में कभी मिले ही नहीं थे, कई पत्रकार वर्षों बाद आमने-सामने हुए। सभी ने अपनी यादों के गर्द को साफ करना शुरू कर दिया - किस मकसद के लिए है पत्रकारिता, किस ओर जा रही है पत्रकारिता, किन-किन दबावों को झेल रही है पत्रकारिता, कौन कहां क्या कर रहा है, के साथ-साथ हास-परिहास।
राष्ट्रीय मीडिया संवाद को कई सत्रों में विभाजित किया गया था, पर ऐसा नहीं था कि उसमें तब्दीली न की जा सके। पूरी स्वतंत्रता थी कि सामूहिक रूप से तय कर चर्चा को आगे बढ़ाया जाये और ऐसा हुआ भी. रात को सभी पत्रकारों ने अपने जीवन के दूसरे पक्ष को टटोला, जिस फन को भूल गए थे उसे याद किया, पद और शक्ति का चोला एक ओर रखकर आयोजन स्थल को कम्यून बना दिया, सभी बराबर और सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
राष्ट्रीय मीडिया संवाद में कुई गंभीर चर्चाएं हुई - क्या है विकास, एकांगी विकास, समग्र विकास, शहरी एवं ग्रामीण विकास में अंतर, विस्थापन, स्वास्थ्य, बच्चों के अधिकार, विकास में महिलाओं की स्थिति, समानता एवं उसके विभिन्न पहलू, वैकल्पिक मीडिया, मुख्यधारा के मीडिया में स्पेस की समस्या का समाधान, अपनी भूमिकाएं आदि कई मुद्दों पर चर्चा की गई। अति व्यस्त माने जाने वाले पत्रकारों ने इन चर्चाओं के लिए दो दिन को नाकाफी माना और लगातार ऐसे संवाद के आयोजित करने एवं इसको विस्तार देने पर बल दिया। संवाद में दैनिक जागरण, प्रभात खबर, जोहार सहिया, अमर उजाला, पी.एन.एन. हिन्दी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, नवभारत, सप्रेस, न्युज टुडे, राज एक्सप्रेस, माय न्यूज डॉट इन, हिन्दुस्तान टाईम्स सहित कई अन्य संस्थानों के पत्रकार शामिल हुए। माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल), दिल्ली वि.वि. एवं चित्रकूट ग्रामोदय वि.वि. के पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी भी संवाद में शामिल हुए।
विकास संवाद ने पिछले वर्ष पचमढ़ी में एक राज्य स्तरीय मीडिया संवाद की शुरुआत छोटे समूह के साथ की थी। उसके बाद मध्यप्रदेश के विभिन्न प्रमुख शहरों के उन पत्रकारों को एक मंच पर लाने की कोशिश की गई जो सामाजिक सरोकार एवं विकास पत्रकारिता के प्रति गंभीर हैं। कई क्षेत्रीय मीडिया संवाद के आयोजन भी किए गए। महज एक वर्ष में सैकड़ों पत्रकार मीडिया संवाद से जुड़ चुके हैं और विकास के विभिन्न मुद्दों पर विश्लेषणात्मक और तथ्यपरक समाचारों एवं लेखों का प्रकाशन एवं प्रसारण कर रहे हैं। विकास संवाद द्वारा विभिन्न मुद्दों पर जारी सरकारी एवं गैर सरकारी रिपोर्ट्स, सर्वे, आंकड़ों आदि का विश्लेषण कर समय-समय पर पत्रकारों को उपलब्ध कराया जाता है।
राष्ट्रीय मीडिया संवाद में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से उभरकर आई कि बाजार एवं व्यावसायिक दबावों के बीच सामाजिक सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता हो सकती है और नई चुनौतियों पर चर्चा एवं नई राह तलाशने के लिए ऐसे आयोजन लगातार किए जाने की जरूरत है।
Saturday, October 13, 2007
मुद्दों की पत्रकारिता
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