पिछले कई दिनों से दोस्तों के बीच यह चर्चा का विषय रहा है कि क्या महिलाओं को उनके अधिकार मिल पाएंगे। यदि मिलेंगे तो किस प्रकार से - मांगने से या छिनकर। मांगने से अधिकारों का मिलना संभव नहीं दिखता, ऐसी राय सबकी थी पर छिनने के प्रति भी किसी ने सहमति नहीं दिखाई। संभवत: हमारा पुरुष होना इसका कारण रहा हो।
यदि इस बहस में नहीं पड़ा जाए तो भी भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के बाद एक व्यापक बदलाव देखने को मिला है, वह यह कि महिलाएं पुरुषों न तो अधिकार मांग रही है और न ही छिन रही है बल्कि अपने अधिकारों का उपयोग खुद से आगे बढ़कर कर रही है। इस प्रक्रिया में यह साफ दिख रहा है, पुरुषों के सहारे के बिना या उनसे उलझे बिना महिलाओं को अधिकारों से लैस हो जाने पर पितृसतात्मक समाज उसे स्वीकार नहीं कर रहा है।
यदि बिना विस्तार में गए कारणों को देखा जाए तो दो कारण साफ नजर आ रहे हैं। पहला यह कि समाज की मानसिकता में कोई बदलाव नहीें आया है और वह महिलाआेंं को उनके पुराने रूप में देखना चाहता है। दूसरा यह कि बाजारीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है और इसमें महिलाओं को कमोडिटी के रूप में इस्तेमाल बढ़ा है। ऐसे में महिलाओं पर हिंसा तेज हुई है। बाजार और पितृसतात्मक समाज की दोनों तरफ से।
इन स्थितियों को देखकर यह साफ लगता है कि बाजारवाद के खिलाफ आंदोलन तेज करना होगा और पुराने समाज की मानसिकता के खिलाफ लड़ाई तेज करनी होगी। तभी संभव की आधी आबादी अपने अधिकारों से लैस होगी।
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Thursday, April 24, 2008
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1 comment:
nice post and u are doing a great job on blogathon keep it up
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