मैंने एक बार फिर आपके लिए कविता पोस्ट की है, पर इस पर विचार करने की जरूरत है। मैं चाहता हूँ कि इसे सचिन लुधियानवी 'गौर' से पढ़ें। हाँ, मैं अगली पोस्ट में ३१ दिसम्बर और बाज़ार पर बात करूँगा। यह बहुत जरूरी है। बाज़ार ने आदमी और आदमी के बीच दूरी बढ़ाने के साथ-साथ उनके बीच अविश्वास भी बढ़ाया है। बात करेंगे हम। इंतजार करिये।
अधूरापन
रात के बाद
अगली सुबह
नई होती है मेरे लिए
बार-बार इस अहसास से
कि पुनर्जन्म हुआ है
बीता हुआ कल
बीती सदी की तरह लगता है
अधूरे कामों की फेहरिस्त
लंबी हो जाती है
बीते कल से जुड़ने का जरिया बन जाते हैं अधूरे काम
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
अधूरे कामों को पूरा करते आ रहे हैं हम
काम को पूरा करना अकेले के बस में नहीं
इस तरह अधूरे काम जोड़ते हैं
पिछ्ले दिन को अगले दिन से
पिछली पीढ़ी को अगली पीढ़ी से
आदमी को आदमी से
Saturday, January 5, 2008
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