मैंने एक बार फिर आपके लिए कविता पोस्ट की है, पर इस पर विचार करने की जरूरत है। मैं चाहता हूँ कि इसे सचिन लुधियानवी 'गौर' से पढ़ें। हाँ, मैं अगली पोस्ट में ३१ दिसम्बर और बाज़ार पर बात करूँगा। यह बहुत जरूरी है। बाज़ार ने आदमी और आदमी के बीच दूरी बढ़ाने के साथ-साथ उनके बीच अविश्वास भी बढ़ाया है। बात करेंगे हम। इंतजार करिये।
अधूरापन
रात के बाद
अगली सुबह
नई होती है मेरे लिए
बार-बार इस अहसास से
कि पुनर्जन्म हुआ है
बीता हुआ कल
बीती सदी की तरह लगता है
अधूरे कामों की फेहरिस्त
लंबी हो जाती है
बीते कल से जुड़ने का जरिया बन जाते हैं अधूरे काम
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
अधूरे कामों को पूरा करते आ रहे हैं हम
काम को पूरा करना अकेले के बस में नहीं
इस तरह अधूरे काम जोड़ते हैं
पिछ्ले दिन को अगले दिन से
पिछली पीढ़ी को अगली पीढ़ी से
आदमी को आदमी से
Saturday, January 5, 2008
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1 comment:
मेरा यह सौभाग्य रहा है कि मैं समकालीन कविता के सबसे समझदार कवियों की संगत में हमेशा बना रहा. आदमीयत के सबसे बडे कवि और अपनी जिंदगी को कविता बना चुके अश्विनी पंकज के बाद इन दिनों राजू नीरा मेरे अजीज कवियों में शुमार हैं... मैं यह बात पूरी संजीदगी से कहना चाहता हूं कि इस दौर के दो सर्वश्रेष्ठ कवियों अश्विनी और राजू की कविताएं में आप जीवन की उन सच्चाइयों से भी रूबरू होते हैं जो बीसवीं सदी के किसी अन्य कवि से अछूती रही है.... जैसे इसी कविता को देखिए ..."बीते कल से जुड़ने का जरिया बन जाते हैं अधूरे काम" ... हम बीते दिनों को भूलने की कवायद करते हुए इस कदर गुंथे होते हैं कि दिनों में फर्क ही नहीं रह जाता.. दस से पांच की नौकरी हो या फिर कथित रचनाशील कार्यों का दोजख सभी में अर्काइव ने जीवन को पीचोड रखा है...लेकिन किस सफाई से राजू अपनी कमजोरी को ताकत की दिखाते हुए दूसरों को अपने काम में सहभागी बनाते हैं- "काम को पूरा करना अकेले के बस में नहीं" सच में हाथ से हाथ मिलाकर चलने की जरूरत का इससे बेहतर बिंब और क्या होगा...
राजू हमें आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा...
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