महात्मा
गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को लेकर हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण
विकास मंत्रालय द्वारा तैयार समीक्षा रिपोर्ट को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
ने विमोचित किया। बहुत सारी उपलब्धियों के साथ-साथ कमियों पर टिप्पणी,
सुझाव एवं नसीहतों के साथ उन्होंने अपना भाषण दिया। उम्मीद की जा सकती है
कि देश के एक शीर्ष व्यक्ति द्वारा योजना की समीक्षा पर व्यक्त किए गए
विचारों के परिप्रेक्ष्य में नीति निर्माता रोजगार गारंटी योजना में सुधार
और आम आदमी तक योजना का बेहतर लाभ पहुंचाने के उपाय पर काम करेंगे। शीर्ष
स्तर की इस समीक्षा के साथ-साथ एक आम आदमी की समीक्षा को भी जानना बड़ा
दिलचस्प है। रोजगार गारंटी को लेकर श्योपुर जिले के गोरस एवं श्यामपुर के
बीच हाइवे पर मिले एक आम आदमी का विचार बहुत ही रोचक है।
बारिश में श्योपुर-सबलगढ़ हाइवे पर दोपहर के समय इकादुक्का गाड़ियों के आवागमन के बीच सामने से आता हुआ एक आदमी दिखाई दिया। वह पास के गांव में रहने वाला सहरिया आदिवासी था, जो अपनी गुम हो गई गाय को ढंूढ़ने के लिए इस खराब मौसम में निकला था। गांव की स्थिति एवं रोजगार गारंटी पर बातचीत में उसकी सबसे ज्यादा नाराजगी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर था। उसने बताया कि कैसे उसके गांव में तालाब बनाने की औपचारिकता पूरी की गई एवं जब उसने आवाज उठाने की कोशिश की, तो अधिकारियों ने उसकी आवाज दबा दी। कुछ ने यह भी कह दिया कि सहरिया आदिवासी दारू पीकर कुछ भी बक रहा है।
उसने कपिलधारा योजना के तहत बन रहे कुएं को लेकर गंभीर बात की। कपिलधारा योजना में संशोधन का सुझाव देते हुए उसने बताया कि वर्तमान में जमीन का पानी बहुत ही नीचे चला गया है। ऐसी स्थिति में कुआं खोदने पर उसमें पानी निकलने की संभावना कम रहती है। यदि एक कुएं को 30-35 फीट तक भी खोद दिया जाए, तो पानी नहीं मिलता है। कुएं के निर्माण में बहुत ज्यादा राशि खर्च होती है। पानी नहीं निकलने से किसान के खेत का एक हिस्सा बेकार हो जाता है। उसका यह मानना था कि कपिलधारा योजना के तहत ट्यूबवेल की अनुमति देनी चाहिए। खेत पर एक छोटा खेत तालाब बनाकर उसके बीच में ट्यूबवेल लगा देना चाहिए, जिससे किसान को लगातार पानी भी मिलता रहे एवं वहां का भूजल भी रिचार्ज हो जाए। इस कार्य में भी लगभग उतना ही खर्च आएगा, जितना कुआं बनाने में खर्च होगा।
यह तर्क बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम यह देख रहे हैं कि कपिलधारा के तहत कुआं बनाने के लिए जितनी राशि दी जाती है, उतने में खुदे गए कई कुओं से पानी नहीं निकल रहा है। बहुत सारे कुओं का निर्माण भी अधूरा पड़ा हुआ है। ऐसे में योजना के तहत कुछ ज्यादा राशि भी खर्च करनी पड़े, तो हमें एक आम आदमी की इस समीक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
बारिश में श्योपुर-सबलगढ़ हाइवे पर दोपहर के समय इकादुक्का गाड़ियों के आवागमन के बीच सामने से आता हुआ एक आदमी दिखाई दिया। वह पास के गांव में रहने वाला सहरिया आदिवासी था, जो अपनी गुम हो गई गाय को ढंूढ़ने के लिए इस खराब मौसम में निकला था। गांव की स्थिति एवं रोजगार गारंटी पर बातचीत में उसकी सबसे ज्यादा नाराजगी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर था। उसने बताया कि कैसे उसके गांव में तालाब बनाने की औपचारिकता पूरी की गई एवं जब उसने आवाज उठाने की कोशिश की, तो अधिकारियों ने उसकी आवाज दबा दी। कुछ ने यह भी कह दिया कि सहरिया आदिवासी दारू पीकर कुछ भी बक रहा है।
उसने कपिलधारा योजना के तहत बन रहे कुएं को लेकर गंभीर बात की। कपिलधारा योजना में संशोधन का सुझाव देते हुए उसने बताया कि वर्तमान में जमीन का पानी बहुत ही नीचे चला गया है। ऐसी स्थिति में कुआं खोदने पर उसमें पानी निकलने की संभावना कम रहती है। यदि एक कुएं को 30-35 फीट तक भी खोद दिया जाए, तो पानी नहीं मिलता है। कुएं के निर्माण में बहुत ज्यादा राशि खर्च होती है। पानी नहीं निकलने से किसान के खेत का एक हिस्सा बेकार हो जाता है। उसका यह मानना था कि कपिलधारा योजना के तहत ट्यूबवेल की अनुमति देनी चाहिए। खेत पर एक छोटा खेत तालाब बनाकर उसके बीच में ट्यूबवेल लगा देना चाहिए, जिससे किसान को लगातार पानी भी मिलता रहे एवं वहां का भूजल भी रिचार्ज हो जाए। इस कार्य में भी लगभग उतना ही खर्च आएगा, जितना कुआं बनाने में खर्च होगा।
यह तर्क बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम यह देख रहे हैं कि कपिलधारा के तहत कुआं बनाने के लिए जितनी राशि दी जाती है, उतने में खुदे गए कई कुओं से पानी नहीं निकल रहा है। बहुत सारे कुओं का निर्माण भी अधूरा पड़ा हुआ है। ऐसे में योजना के तहत कुछ ज्यादा राशि भी खर्च करनी पड़े, तो हमें एक आम आदमी की इस समीक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
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